Love Sayari
गम की नजर से देखिए, दिल के असर से देखिए है अश्क भी एक लाल रंग, खूने-जिगर से देखिए
तैराक भी कितने यहाँ प्यासे ही मर गए संसार की नदी में भी जरा निकल के देखिए
खुशबू से भींग जाएगी, नाज़ुक सी उंगलियाँ मेरे दिए गुलाब को आप मसल के देखिए
ये हुस्न देखकर ही तो वो चाँद परेशान है वो जल रहा है आपसे, अपने ही छत से देखिए
चाँद आया है फलक पे सूरज की जगह हो गई अब ये धरती रहने की जगह
भीड़ लग जाती है दरिया पे अब शामों में कहाँ ढूँढेगी ये तन्हाई बैठने की जगह
ईँट पत्थर के जंगलों में भटकती चिड़िया जाने किस पेड़ पे है बाकी रहने की जगह
सो रहे हैं सभी लोग इस बस्ती में जागता है कोई दर्द ही सोने की जगह
चाँद बदन को चूम रहा है, दरिया गुमसुम लेटी है पंखा झलती है हवाएँ, हलचल थोड़ी होती ह
ै बादलों की छत से सितारे, देख रहे हैं आँखे फाड़े बैठ गगन भी सोच रहा है, धरती सुंदर लगती है
आज भी परदेश गया है, सूरज शाम की गाड़ी से दिन के रथ पे बैठके फिर से रात की रानी आई है
वक़्त का पहरा हुआ ढीला,उसने पी ली इश्क की बोतल मौसम भी आजाद हुआ है, मिलन की खुशबू उड़ती है
जान देने के सिवा एक और चारा है इस जुदाई में लिखना भी एक सहारा है
शाम कट जाती है दरिया पे बैठे-बैठे रात संग चाँद-सितारों का उजाला है
चंद रिश्तों को हम आज भी निभाते हैं उनसे मिलना भी मेरे दिल को गँवारा है
भले दुनिया नहीं देखेंगे इन आँखों से मौत की राह देखना भी एक नजारा है
वो मुसाफिर भी किसी मोड़ पे भला क्यूँ रूकता जिसके पैरों में न जंजीरें थी, वो भला क्यूँ रूकता
कहीं माजी के इशारे पे मैं पीछे न मुड़ा छूटे लम्हों की राहों पे आख़िर मैं क्यूँ चलता
दश्त में खौफ था फैला किसी आँधी का ऐसे माहौल में एक पत्ता भी भला क्यूँ हिलत
सामने आते ही जिसके मैं आईना बन गया फिर मुझे खुद में उसके सिवा कोई क्यों मिलता
दर्द ये क्या है इस दर्द पे ही बात करो और कुछ भी नहीं बस आँसुओं की बात करो न ये दुनिया
न ये ही रिश्ते, न ही बंधन की इन हवाओं में उड़ते पंछियों की बात करो
राज़ तन्हाई की और बोलियाँ निगाहों की मुझसे कुदरत की ख़ामोशियों की बात करो
मुझे समझा न सकोगे कभी दोस्त मेरे सोचने की नहीं, अहसासों की बात करो
सारी दुनिया में मेरा नाम जो भी सुनता है पहले हँसता है फिर दीवाना मुझे कहता है
तुमको फुरसत ना मिली कर्ज को चुकाने से तेर पास आशिक के लिए कुछ नहीं बचता है
तोड़ ना पायी तुम पत्थर के इन दीवारों को दिल तेरा आशियाँ के कब्र में ही मरता है
रूख हवाओं का जाने कब बदल जाएगा मौसमे-बेवफा में दिल का दीया जलता है
बंद आँखों में ये आँसू जलते गए, जलते गए नींद में भी दर्दे राह पे चलते गए, चलते गए
आँसुओं से रंग दी हमने अपनी कितनी ही गज़लें रो-रो के ही दिल की बातें लिखते गए, लिखते गए
लोगों ने शम्मे जलाए जाने किन-किन चीजों से हम दो शम्मे में आँसू को भरते गए, भरते गए
तेरी आँखों में भी हमने आँसू ही तो देखे थे इसलिए तो तुमसे मुहब्बत करते गए, करते गए
जिसको भी चाहा रे तुमने, खो गया रे खो गया जिसको भी अपना माना, छल गया रे छल गया
खोजने निकला था मैं एक आशियाँ सुकून का मयक़दे में आके शराबी, बन गया रे बन गया अब न वो दुनिया रही,
अब न वो रिश्ते रहे अब तन्हाई में मुहब्बत मिल गया रे मिल गया
ये दरो-दीवार मुझको कैद ना रख पाएगी रूह तो पंछी है कोई, उड़ गया रे उड़ गया
कोई दरवाज़े पे दस्तक देकर चली गई आधी रातों में वो दिल को छूकर चली गई
मैं बरसता भी तो कैसे अबके सावन वो अपनी ज़ुल्फों में मुझे लेकर चली गई
वो कुदरत के नज़ारों से भी सुंदर है अपनी तस्वीर मेरे दिल को देकर चली गई
दिल धड़कता है, धड़कने की सज़ा पाता है मुझे दर्द भरी साँसे वो देकर चली गई
आज भी इंसानी दुनिया रीत में पुराने हैं कितनी सदियाँ बीत गई, आनेवाली हजारों हैं
जोड़ सकना भी ख़ुदा के हाथ की अब बात नहीं क्या करेगा वो भला भी, बेवफा हजारों हैं
कोई ना बतलाए किसी को, किस तरह से वो जीए जीने के हैं लाखों तरीके, जीनवाले हजारों हैं
बातें करने में तो हमसे दुनिया वाले बेहतर हैं राम-राम को रटने वाले रावण यहाँ हजारों हैं
मेरे जीवन में बड़ी दूर तक वीरानी है इस जमाने को इस बात पे हैरानी है
एक मुद्दत से खुला है मेरा दरवाज़ा चोर तक को यहाँ आने में परेशानी है
इस फ़कीरी में भला कौन साथ देता है लोग कहते हैं कि यह मेरी नादानी है
इश्क मुझको है तुमसे, चीज़ों से नहीं दिले-नाचीज़ है कि तू भी दीवानी है
आह ये मुरझाया गुलाब जाने कब खिलेगा कब इसमें लाल रंग का खूने-इश्क बहेगा
तोड़ा है जमाने ने जिस शाख से इसको जाने कब उन बाहों का फिर साथ मिलेगा
फरियाद कर सका न वो, खामोश रह गया लेकिन टूटकर भी इतना जोश रह गया
महकता रहा, सजता रहा वह महफिलों में फिर एक दिन सूखकर मायूस रह गया
आशियां में पड़ा है किसी गुलदान में या बिकने को रखा है किसी दुकान में
कातिल हो गई उनकी ही उंगलियां ये गुलाब खिला था यहां जिसके मकान में
लो मेरे वालिद तेरे कदमों में हमने अपनी रूह गिरवी रख दी
तूने बेबस को जमाना दिया खेलने के लिए खिलौना दिया रोटी-मकां का सहारा दिया तेरे अहसानों के बदले में लो मेरे वालिद तेरे कदमों में हमने
ये रूह गिरवी रख दी ये जिंदगी तेरी गुलामी में है भुलूंगी जो खता जवानी में है इस दिले-नादां का खूं कर दूँगी जहाँ बाँधोगे, खुद को बाँध लूँगी लो मेरे वालिद, तेरी इज़्जत के लिए हमने अपनी रूह गिरवी रख दी
मेरे आशिक तुझे जख़्म दे रही हूँ मैं बेवफाई का रस्म निभा रही हूँ आशिक को आँसू का सामां देकर लो मेरे वालिद, तेरे कदमों में हमने अपनी रूह गिरवी रख दी
ठहर जा ऐ सावन, ठहर जा ऐ बादल बहने दे निगाहों से थोड़ा तो काजल
छोड़के ओ फरिश्ते तुम जा न सकोगे जब चिड़िया तुम्हीं से हुई है रे घायल
जानती हूं तुझे जाने कितनी सदी से जुदाई में भीगा है बरसों से आँचल
अब तू ही सहारा है ओ रोती दरिया तेरे बिन किधर जाएगा तन्हा सागर
वो भी क्या रातें थी जब खूब जगा करता था क्या ख़बर थी कि मैं खुद से दगा करता था
जो हकीकत भी नहीं था, फसाना भी नहीं मैं कहीँ बीच की मंजिल पर रहा करता था
फासलों में भी कई तार थे जुड़ने के लिए बस यही सोचके तुम्हें याद किया करता था
कुछ शिकायत थी तुमसे भी, खुद से भी जाने कुछ दर्द था, गजल में लिखा करता था
एक श्मशान से आसमान से गुजरते हुए हमने देखा है सितारों की चिता जलते हुए
मर चुके सावन को काँधे पर ले चली है हवा बादलें संग चल रहे हैं बहुत रोते हुए
एक दरिया में डूब गया था चाँद का हुस्न और आईना टूट गया था उसे देखते हुए
इस अदा से मेरे दिल में गुलाब खिला मुझे अच्छे लगे ये काँटे सभी चुभते हुए
मुझे दिल से जो भुला दिया, तो तूने क्या बुरा किया कांटे का दामन छोड़ कर, जो भी किया अच्छा किया
आवारगी की राह पे चलके मुझे मंजिल मिली जिसने मुझे बेघर किया उसने भी कुछ भला किया
जिनके घरों में आंसू थे वहीं पे मुझे पानी मिला इस शहर में मेरी प्यास ने कुछ ऐसा तज़रबा किया
ऐ दिल बता तुझे क्या मिला मेरे दाग से खेलकर तूने दर्द से सौदा किया, अपनी गजल बेचा किया
तेरी जुल्फ में लगा सकूं, वो कली न मैं खिला सकूं बेबस खिजां में बैठा हूं, वो बहार भी न मैं ला सकूं
सावन की एक फुहार से मैंने मांग ली कुछ बूंद भी जिसे आंख में तो भर लिया, उसे अब न मैं गिरा सकूं
कहा भी क्या समझा नहीं, देखा भी क्या सोचा नहीं यूं खो गया मैं खुद में ही कि कहीं भी न मैं जा सकूं
सर पे जब सदियां गिरी, मैं फलक में जाके धंस गया अब चांद के मानिंद मैं जमीं पे भी न आ सकूं
मैं परिंदों की तरह आस्मा में उड़ता था आठों पहर तेरे ख़यालों में डूबा रहता था
मुझपे इतनी तो इनायत की सनम तुमने मुस्कुराती थी जब तुमको सनम कहता था
तू जो खोयी तो ये सारा जहां वीरान हुआ अब वो जोगी हुआ जो कल तेरा दीवाना था
मैं तो टुकड़ों को जोड़ता हूँ कि तुझे देखूँ तू ही तस्वीर थी और दिल मेरा आईना था
ये जान गँवा दी, ये जुबां गँवा दी हमने तेरे इश्क में दो जहान गँवा दी
सीने में पड़े थे दिल के हजार टुकड़े एक नज़र से तूने उनमें आग लगा दी
मेरे लब चूम लेते माहजबीं को मगर उसने हथेलियों में रूखसार छुपा ली
जब चाँद को देखा तो हमने अचानक अपने ही आशियाँ का चिराग़ बुझा दी
जान कितनी है बची, साँस कितनी है बची दिल बता दे कि मेरी प्यास कितनी है बची
क्या जरूरत है तुझे गर्दिशों के जुग़नू की हुस्न की ये रोशनी तेरे पास कितनी है बची
जब भी तुम याद करोगे मैं चला आऊँगा मेरे अंदर तेरी ये तलाश कितनी है बची
कभी शायद मेरी भी गमे-दुनिया सँवर जाए मेरी जाँ, तेरे आने की आस कितनी है बची
मुझे दुनिया का दस्तूर निभाना नहीं आता जान देना ही आता है, जान लेना नहीं आता
कोई भरता नहीं अपने दिल का खाली पन्ना आँसुओं से यहाँ सबको लिखना नहीं आता
कैसा जंगल है ये समाज देखिए तो जहाँ घोंसलों में पंछियों को रहना नहीं आता
रोज़ आते हैं सभी लोग यहाँ दैरो-हरम माँगना आता है सबको, बाँटना नहीं आता
बीती बातों को दुहराने से फ़ायदा क्या है बेवफा होना था उसे, वो हुआ, बुरा क्या है
किस तरह बाँटता है ऐ खुदा बंदों को सिफ़त तेरी दुनिया में ये कम और ज़्यादा क्या है
लोग जब दिन-रात प्यार के गीत सुनते हैं फिर इस जहान का ये खून-ख़राबा क्या है
कोई देखेगा वो जो मन में बसा रखेगा ये मेरे सामने हो रहा रोज़ तमाशा क्या है
शीशे के खिलौनों से खेला नहीं जाता रेतों के घरौंदों को तोड़ा नहीं जाता
आहिस्ते से आती हवा को कैसे कहूँ मैं कि बेशरमी से बदन को छुआ नहीं जाता
जलते हुए दिलों की निशानी जो दे गया कुछ ऐसे चिरागों को बुझाया नहीं जाता
बनती हुई तस्वीर तेरी चाँद बन गई अब मेरे तसव्वुर का उजाला नहीं जाता
हम वस्ल के वहम में जीये जाएँगे हिज़्र के दर्द अलम से पीये जाएँगे
तेरी यादों की रातों में रोएंगे हम इश्क में ये सितम भी सहे जाएँगे
हद से ज़्यादा ये दर्द जब बढ़ जाएगा हम ख़ामोशी को तोड़ गजल गाएँगे
जब फुरक़त के सदमे मिले हैं हमें तुमसे मिलने की दुआ बस माँगेंगे
उदास रात का मंजर है कैसा धुंधला-धुंधला देखिए आज तो मौसम है कुछ बदला-बदला
मायूस अंधेरे के साये में जी रहा हूँ तन्हा जाने कब चाँद दिखेगा मुझे उजला-उजला
इस ज़माने के गुलशन को गौर से देखा मुझे हर फूल मिला घर में मसला-मसला
हम तो कहते हैं आपसे है जनम का रिश्ता आप क्यों इस प्यार को कहती हैं पहला-पहला
मैं तो पीती हूँ कि साँस लेने में दिक्कत ना हो कोई तो शख़्स हो जिसे मुझसे शिकायत ना हो
वो मिला था कितनी बार मैं गिन ना सकी अब जो मिल जाए तो फुरक़त की नौबत ना हो
रूह जि़ंदा है मगर ज़िस्म एक बोझ सा है अपने शानो पे किसी की ऐसी मैयत ना हो
तिश्नगी है, तमन्ना है और अब तन्हाई भी है मेरी महफ़िल में तबस्सुम की कोई आहट ना हो
अभी बरसात है, कभी रूकती कभी गिरती हुई और एक शाम है भीगी हुई सी ढलती हुई
कौन जाने कि ये घटाएँ कहाँ तक जाएँगी जाने किस मोड़ पे बेवफा होगी हवा चलती हुई
जिस जगह कोई तलाशेगा वज़ूद अपना वहीं मिल जाएगी एक दरिया उसे रोती हुई
ये फलक़ कितने मुसाफिरों का आशियाना है फिर भी चिंगारियाँ हैं उसके दामन में जलती हुई
शाम तो रख लिया अब रात को मैं कैसे रखूँ इतने उदास लम्हों को एक दिल में मैं कैसे रखूँ
हाथ आए थे चंद अश्क, छिटक के भाग गए अपनी आँखों में उसे बाँध कर भला मैं कैसे रखूँ
जो हवा के साथ मेरे दिल तक चले आए हैं इन गर्द-गुबारों को इस जिगर में अब मैं कैसे रखूँ
बूँद बनकर वो मेरे जिस्म में भींज गया है ऐसे सावन को तेरे तोहफ़े के लिए मैं कैसे रखूँ
ये जान गँवा दी, ये जुबां गँवा दी हमने तेरे इश्क में दो जहान गँवा दी
सीने में पड़े थे दिल के हजार टुकड़े एक नज़र से तूने उनमें आग लगा दी
मेरे लब चूम लेते माहजबीं को मगर उसने हथेलियों में रूखसार छुपा ली
जब चाँद को देखा तो हमने अचानक अपने ही आशियाँ का चिराग़ बुझा दी
जान कितनी है बची, साँस कितनी है बची दिल बता दे कि मेरी प्यास कितनी है बची
क्या जरूरत है तुझे गर्दिशों के जुग़नू की हुस्न की ये रोशनी तेरे पास कितनी है बची
जब भी तुम याद करोगे मैं चला आऊँगा मेरे अंदर तेरी ये तलाश कितनी है बची
कभी शायद मेरी भी गमे-दुनिया सँवर जाए मेरी जाँ, तेरे आने की आस कितनी है बची
मुझे दुनिया का दस्तूर निभाना नहीं आता जान देना ही आता है, जान लेना नहीं आता
कोई भरता नहीं अपने दिल का खाली पन्ना आँसुओं से यहाँ सबको लिखना नहीं आता
कैसा जंगल है ये समाज देखिए तो जहाँ घोंसलों में पंछियों को रहना नहीं आता
रोज़ आते हैं सभी लोग यहाँ दैरो-हरम माँगना आता है सबको, बाँटना नहीं आता
तन्हाई की फिज़ा में आशियाँ की जिंदगी दुनिया की जिंदगी से परेशाँ है जिंदगी
मैं जिंदगी से उठता धुँआ बुझा-बुझा खाकों के रहगुजर पे नश्तर है ज़िंदगी
आख़िर मुहब्बतों के दरम्याँ हैं हिज्र ही जहाँ दर्द ही दवा है और जहर है जिंदगी
अब तो करीब आओ कि मुद्दतें हुए मिले जब तक तू मेरे पास है, दिलबर है जिंदगी
समर्पित है ये प्यार एक मूरत को भूल न पाऐंगे उस दर्द भरी सूरत को
उसकी तस्वीर है मेरी इन निगाहों में बसी अश्क ही चाहिए जलने के लिए दीपक को
ये मेरा दर्द मेरे सीने में दफ़न ही रहा और क्या चाहिए मरने के लिए आशिक को
चाहतें ना मिली तो क्या बेरूखी ही सही वो गज़ल है जो मिली है कोरे कागज़ को
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